गुरुवार, अक्तूबर 22, 2009
दिल्ली शहर की ट्रैफिक के हाल
बर्दाशत की हद (दुनिया मेरे आगे)
जनसत्ता में 17अगस्त को दुनिया मेरे आगे में प्रकाशित
मंगलवार, अप्रैल 28, 2009
अभिनेता चले नेता को जितने
बिहार और झारखंड में सभी पार्टियां अभिनेताओं के सहारे चुनावी जंग जीतने की फिराक में हैं। चिलचिलाती गर्मी और नेताओं को सुनने में घटती दिलचस्पी के कारण जब भीड़ घटने लगी तो नेताओं ने नए पैंतरे अपनाने शुरू कर दिया। यही कारण है कि फिल्मी दुनिया के कई नामी-गिरामी कलाकार इन दिनों विभिन्न पार्टियों के लिए यहां चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। उन्हें न तो तपती धूप की परवाह है, न ही खस्ता हाल सड़कों की। वह तो बस अपने उम्मीदवार को जिताने के जोश में लगे हुए हैं। मतदाता भी इन फिल्मी कलाकारों को अपने बीच पाकर खुश है और इन्हें देखने के लिए बड़े जोश के साथ चुनावी रैलियों ने आ रहे हैं। अपने उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार के दौरान ये फिल्मी कलाकार जमकर फिल्मी डायलाग बोल रहे हैं। और तो और मतदाताओं को लुभाने के लिए ये कलाकार स्थानीय भाषा में अपने पार्टी के पक्ष में वोट डालने की भी अपील कर रहे हैं, जिसे देखकर स्थानीय लोगों में खासा उत्साह नजर आ रहा है। यही कारण है कि बिहार और झारखंड की जनता इस चुनावी मौसम में बेटिकट ही अभिनेताओं को देखने का मजा ले रहे हैं। यहां इन दिनों निशा कोठारी, टीवी कलाकार श्वेता तिवारी, पूनम ढ़िल्लन, जीनत अमान सहित कई कलाकार विभिन्न पार्टियों के पक्ष में चुनावी सभा कर रही हैं। अभिनेत्री महिमा सिंह रांची में जहां कांग्रेस प्रत्याशी सुबोध कांत के लिए प्रचार में जुटी हुई हैं, वहीं मशहूर फिल्म अभिनेत्री कोइना मित्रा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी की पार्टी के लिए चुनाव प्रचार कर रहीं हैं। बिहार में भी फिल्म और टीवी कलाकारों की मांग इन दिनों काफी बढ़ गई है। चुनावी मैदान में उतरे प्रत्याशी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए इन कलाकारों का सहयोग लेना नहीं भूल रहे है। कुछ प्रत्याशी तो ऐसे हैं, जिनके घर में ही कलाकार हैं। रामविलास पासवान का बेटा चिराग पासवान और शत्रुध्न सिन्हा की बेटी सोनाक्षी अपने पिता के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं। चुनावी सभा में भीड़ खिचने वाले यह अभिनेता अपने प्रत्याशियों के पक्ष में कितना वोट ला पाएंगे, यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा। फिलहाल बिहार और झारखंड में चुनाव का फिल्मी शो जारी है।
आम चरण के तीसरे चरण में सिक्किम में लोकसभा और राज्यविधान सभा के सभी सीटों के लिए मतदान होना है। यहां लोकसभा की एक और विधानसभा की बत्तीस सीट है। यहां मुख्य मुकाबला सत्तारुढ़ सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट और विपक्षी कांग्रेस के बीच होना है। सिक्किम में इस बार के चुनाव में पूर्व की ही तरह स्थानीय मुद्दे ही हावी है। सत्तारुढ़ सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट लगातार तीसरी बार यहां सत्ता में हैं। यह पार्टी इस बार का चुनाव लगातार चौथी बार जीत कर इतिहास रचना चाहती है। इससे पहले लगातार तीन बार सत्ता में आने का कारनामा वाम पार्टी बंगाल और त्रिपुरा, राष्टÑीय जनता दल बिहार, कांग्रेस अरु णाचल प्रदेश, भाजपा गुजरात, और सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट सिक्किम में आ चुकी है। लेकिन आजादी के साठ साल बाद भी कोई पार्टी किसी राज्य में लगातार चार बार सत्ता में नहीं आई है।पिछले बार एसडीएफ को वहां के बत्तीस विधानसभा में से इकतीस सीटों पर और राज्य की एक मात्र लोकसभा सीट पर विजय प्राप्त हुई थी। लेकिन इस बार हालात कुछ अलग है। परिसीमन के बाद 32 में 27 विधानसभा क्षेत्रों पर इसका प्रभाव पड़ा है। जिसका असर चुनाव में पड़ने की पूरी संभावना है। साथ ही इस पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना भी इस चुनाव में करना पड़ सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं 30 अप्रैल को होने वाले चुनाव में स्थानीय मुद्दा बहुत ही हावी है। इनमें सिक्किम को आदिवासी राज्य का दर्जा देने और मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग की कथित दोहरी नागरिकता का मुद्दा प्रमुख है। जिन मुद्दों पर एसडीएफ धिरती नजर आ रही है। प्रकृति की गोद में बसे इस पर्वतीय राज्य में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमुत्री नरबहादुर भंडारी जातिगत समीकरण से लेकर स्थनीय मुद्दे पर भी एसडीएफ को इस बार कोई छुट देने के मूड में नहीं है। हालांकि पिछले चुनाव में लगभग तीन लाख मतदाताओं वाले इस राज्य में विधानसभा के लिए पड़े मतों में से 71.09 फीसदी मत एसडीएफ को मिला था। इस बार इन मतों को अपने पक्ष में रखने के लिए सत्तारुढ़ पार्टी को भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। मतदान की तारीख नजदीक आने के साथ ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो चुका है। साथ ही पक्ष और विपक्ष के कार्यकर्त्ता पूरे उत्साह के साथ चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। पिछले चुनाव परिणाम को देखते हुए विपक्षी पार्टियां अगर सत्तारुढ़ दल की सीट कम करने में अगर कामयाब होती है तो यही असकी बहुत बड़ी जीत मानी जाएगी।
रविवार, अप्रैल 26, 2009
गुजरात मे चुनाब
सोमवार, अप्रैल 20, 2009
तमिल मुद्दा पर राजनीती
vam morcha की halat
शुक्रवार, अप्रैल 17, 2009
डेल्ही मे चुनाब
शनिवार, अप्रैल 11, 2009
पवार कई नावों में सवार
चुनाब मे काला धन
गुरुवार, अप्रैल 09, 2009
वनवास से लौटकर कहां जाएंगे ब्राह्मण
इस बार बिहार में जद यू भाजपा गठबंधन से आरजेडी लोजपा गठबंधन का सीधा मुकाबला होना है । इन दोनों गठबंधन में बा्रह्मण कहीं भी वोट बैंक के रुप में नहीं है। बिहार की राजनीति में कभी ब्राह्मणों की तूती बोलती थी । यहां जग्ग्नाथ मिश्रा,भागवत झा आजाद सहित कई ब्राह्मण नेता मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लेकिन लालू यादव के 1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद यह समुदाय उपेक्षित होता चला गया। 90 के दशक में ब्राह्मणों के उपेक्षित होने में मंडल,कमंडल की राजनीति बहुत महत्वपूर्ण रही है। लालू यादव ने यहां अपनी एक ऐसी छवि बनाई जिस फल का स्वाद वो आज तक चख रहें हैं ।
बिहार में राममनोहर लोहिया के तीनों शिष्य लालू यादव,नीतीश कुमार ओर रामविलास पासवान ने बिहार को जिस वर्ग में बांट दिया उसमें बाह्मण समुदाय कहीं नहीं था । भाजपा जरुर ब्राह्मणों को साथ लेकर चल रही है लेकिन इस वर्ग का एक बड़ा समुदाय यह मान कर चल रहा है कि भाजपा नीतीश की हाथ का कठपुतली हो गई है। जिससे ब्राह्मणों का भाजपा से मोह भंग होने लगा है।
बिहार के लोकसभा चुनाव में सभी पार्टियों ने ब्राह्मण उस हिसाब से टिकट नहीं दिया है। जनता दल यू ने अपने कोटे के 25 लोक सभा सीट में से एक भी टिकट ब्राह्मणों को नहीं दिया है। जबकि भाजपा ने 15 में से सिर्फ दो टिकट ब्राह्मण को दिया है । जदयू ने 2004 के चुनाव में मात्र एक सीट ब्राह्मण क ो दिया था, जो झंझारपुर से पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा थे । उस चुनाव में वह लगभग पांच हजार मतों से चुनाव हार गए थे। इस बार के चुनाव में उस सीट से जदयू ने मिश्रा को टिकट न देकर मंगनी लाल मंडल को दे दिया है। जदयू ब्राह्मण को टिकट न दिए जाने पर कहती है कि मीडिया यह क्यों भूल जाती है कि हमने शिवानंद तिवारी को राज्यसभा में भेजा हुआ है, जबकि हमारी सहयेगी पार्टी बीजेपी ने दो टिकट ब्राह्मण को दिया ही है।
बिहार में ब्राह्मण समुदाय अपने को उपेक्षित महसूस क रने लगे हैं। ऐसे में लालू यादव ने ब्राह्मण के आगे चुग्गा फेंका है। गरीब ब्राह्मण को आरक्षण देने का चारा शायद ब्राह्मण को लुभा सकता है क्योंकि ब्राह्मण समुदाय नीतीश द्वारा पिछड़े समुदाय को सुविधा देने से डरे हुए हैं। उन्हें लगने लगा है कि लालू यादव सिर्फ ब्राहमणों के खिलाफ बयान देते थे जबकि नीतीश उनके हित के खिलाफ काम कर रहें हैं ऐसे में अगर उपेक्षित ब्राह्मण राजद के साथ चला जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। ऐसे में बिहार की राजनीति में फिर से कुछ परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
अभी तक का हालात ऐसा है कि सभी पार्टी ब्राह्मण को साथ लाने में डर रहे हैं कि इससे कहीं बाकी जाति उनसे दूर न हो जाएं । ऐसे में ब्राह्मण विरोध से ही पैदा हुए लालू ब्राह्मण को साथ लाने का प्रयास कर रहे हैं। यह प्रयास लालू के हित में कितना रहता है यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल पाएगा । फिलहाल लालू का यह प्रयास क्या उनके द्वारा ब्राह्मण समुदाय को दिया गया बनवास की समाप्ति साबित होगी।
चन्दन कुमार चौधरी
बुधवार, मार्च 04, 2009
सूरजकुंड के बहाने दो बात...
अपना विचार।
झलकियां
1 मेले परिसर के बाहर गाड़ी पार्किंग की व्यवस्था की गई थी। लेकिन अजीबोगरीब स्थिति तब पैदा हो गई जब एक कार वाला गाड़ी पार्क करने को लेकर दूसरे कारवाले से बुरी तरह से उलझ गया। दोनों कारों में सवार परिवार वालों के बीच- बचाव के बाद मामला शांत हुआ।
2 पूरे मेले परिसर में खाना बहुत ही मंहगा था। यहां तक की बाजार में उपलब्ध 4 रूपये की चाय यहां 10 रूपये में मिल रही थी। दिन चढ़ने के बाद भी काफी लोगों ने वहां खाना नहीं खाया। और ‘भूखे भजन न होई गोपाला’। नतीजा वे सब जल्दी घर को लौट रहे थे।
3 मेले में आए विदेशी सैलानियों ने यहां राजस्थान का मजा लिया। उन्होनें जमकर उंट की सवारी की। पांव में धुंधुरू और शानदार ढ़ंग से सजाए गए उंट बहुत ही आकर्षक लग रहे थे ।
4 मेले की भीड़ से अलग मीडिया सेंटर की व्यवस्था की गई थी। यहां का माहौल बिल्कुल शांत था। चाय- पानी की भी व्यवस्था रहने के कारण मीडियाकर्मीयों को यहां पीते-पिलाते देखा गया।
5 आईआईएमसी के छात्रों को लाने और ले जाने के लिए बस की व्यवस्था की गई थी। जाते वक्त अन्ताक्षरी की घुनों ने माहौल को जानदार बना दिया। लेकिन आते समय छात्र इतने थक गए थे कि कइयों के मुंह से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी।
6 मेले में इस बार पहली बार मिस्र शामिल हुआ था। यह विशेष आकर्षण का केन्द्र भी रहा । यहां से आए प्रतिनिघि मिल रहे सम्मान से काफी खुश थें।
सूरज कुंडमेला
विश्व सुरक्षा एंव क्षेत्रीय संगठन
चंदन कुमार चैधरी, नई दिल्ली - आज विश्व में कई क्षेत्रीय संगठन है। जिसके अपने अलग -अलग हित हैं। लेकिन इन क्षेत्रीय संगठनों के बनने से विश्व की सुरक्षा एंव शान्ति मे बढ़ोतरी हुई है। द्वितीय विश्व युद्ध ने विश्व में सुरक्षा और शान्ति को ध्वस्त कर दिया था । जिससे सबक लेते हुए अमरीका, रूस , फांस आदि महाशक्तियों ने व्यवहारिक कदम उठाते हुए मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना किया था । 1945 में ही गठित अरब लीग से लेकर 2008 में बने यूनासूर तक कई क्षेत्रीय संगठन अपने उद्देश्य के साथ शांति और सुरक्षा के कार्य में लगे हुए हैं क्षेत्रीय संगठन की उपयोगिता अमरीकी सीनेटर वेण्डनबर्ग के अमरीकी संसद कांग्रेस के उच्च सदन सीनेट में दिए गए इस बयान से साबित होता हैः- शक्ति को शक्ति द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है । हमें विश्व को द्विध्रुवीय से बहुध्रुवीय बनाना होगा , जिससे शक्तियां विकेन्द्रित रहेंगी । संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपने चार्टर के अनुच्छेद 33 में क्षेत्रीय संगठनों की उपयोगिता को स्वीकार करके मान्यता दी गई है । संध की मान्यता है कि क्षेत्रीय संगठन के सहयोग से शान्ति ,विकास , और सुरक्षात्मक कार्यों को विश्व में आगे बढाया जा सकेगा ।
विश्व में कई क्षेत्रीय संगठन है जिनमें से कुछ अरब लीग, अमेरीकी राज्यों का संगठन जिसे संक्षेप में ओ,ए,एस कहा जाता है , यूरोपीय आर्थिक समुदाय , अफ्रीकी एकता संघ , आसियान, गल्फ सहयोग परिषद , दक्षिण एश्यिा सहयोग संगठन यानि सार्क , एशिया -प्रशांत आर्थिक सहयोग संघ, हिमतक्षेस ,यूनासुर प्रमुख हैं । इनके सहयोग से संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व सुरक्षा एंव शान्ति को बढ़ावा देने में ज्यादा सफल साबित हो रही है। यह संगठन क्षेत्रीय हितों के साथ-साथ सम्पूर्ण मानवता के लिए जैसं मानव अधिकार , विश्व कल्याण ,मुक्त बाजार और अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के उन्मूलन के लिए भी कार्य कर रहा है।
मीडिया पर मंदी का असर पड़ेगा
मीडिया पर मंदी का असर पड़ेगा भारतीय जनसंचार संस्थान के रेडियो और टेलीविजन विभाग में सह आचार्य शाश्वती गोस्वामी का कहना है कि मीडिया पुरी तरह से विज्ञापन पर निर्भर है । मंदी की वजह से मीडिया सेक्टर को विज्ञापन नहीं मिल रहा है जिससे इस विभाग में आगें कुछ दिनों के लिए भर्ती में कमी हो सकती है या बंद भी हो सकता है । साथ ही मीडिया सेक्टर को विज्ञापन प्राप्त करने के नए तरीके भी ढूंढने पर सकते हैं। यह बातें उन्होनें एक साक्षात्कार में कही है । इसी साक्षात्कार में उन्होनें कहा कि मीडिया के स्तर में पिछले दिनों आई गिरावट के लिए बाजार जिम्मेदार है । जो लोग मीडिया को चलाते हैं उन्हें लगता है कि एक पे्रज थ्री वाला कल्चर बनाया जाय जिससे हमें ज्यादा फायदा पहुंचेगा । ऐसाा सच है नहीं। इस तरह से लोगों की संवेदनसीलता खत्म करने की कोशिश की जा रही है । हमारे यहां माॅल संस्कृति विकसित करने की कोशिश की जा रही है जो एक अजीब तरह की संस्कृृति है । भारतीय घरों में इस का माहौल है नहीं फिर भी लाग धुलमिल गए हैं । बाजार सोचता है कि माॅल होगा तो विज्ञापन होगा और विज्ञापन होगा तो मीडिया चलेगा अतः ज्यादा दुख की बातें मीडिया में न हो जिससे लोग सहम जांए। इसलिए मीडिया के स्तर में पिछले दिनों गिरावट आई है । मीडिया का गिरावट समाज के साथ होता है । यह एक चक्र की तरह है जिसमें मीडिया समाज के साथ ही चलता है ।
इसी साक्षात्कार में महिलाओं की नाकारात्मक छवि मीडिया द्वारा पेश किए जाते रहने का सिलसिला इस वर्ष थमने से उन्होंने इन्कार कर दिया। उन्होनें कहा कि महिला को एक उपभोग की वस्तु की तरह पेश किया गया है । इसे रोकने के लिए कोई कानून लाने से कुछ नहीं होगा । इसे रोकने के लिए जनता की मानसिकता बदलना होगा । क्योंकि मीडिया जनता की भावना को ही जगह देती है । जनता बदलेगी तो मीडिया भी अवश्य बदलेगा
पूर्वोतर से जुड़े एक सवाल की जवाब में उन्होनें कहा कि पूर्वोतर एक बात है लेकिन लेकिन उसमें 7 राज्य है । हरेक राज्य की संस्कृृति अलग है । समस्या अलग है अभी तक तो मीडिया की रिपोर्टिंग बहुत खराब रहा है । इससे पूर्वोतर मुख्यधारा में शामिल नहीे हो पाएगा । ऐसे में पत्रकारों को चाहिए कि वो समस्या को पहचाने । और उसी तरह की रिपोर्टिंग करे । सभी तरह की मीडिया माघ्यमों में इस वर्ष श्रीमती गोस्वामी एफएम रेडियो को आगे देख रहीं हैं । उनका मानना है कि अखबार तो रहेगा ही लेकिन फिलहाल दो तीन वर्ष एफ एम रेडियो का धूम धडाका जमके चलेगा भविष्य की पत्रकारिता की जिम्मेदारी वह पीढी के युवा पत्रकारों के कंधे पर डालते हुए कहती हैं कि वर्ष 2009 में जो पत्रकार बनकर बाहर जाए वह थोड़ी जवाबदेही से काम करें । साथ ही यह भी ध्यान रखें कि यह न्यूज किसी के काम आएंगंे कि नहीं।