गुरुवार, जनवरी 22, 2009

श्रीलंका में लिट्टे पतन की ओर

श्रीलंका में वहां की सरकार और अलगाववादी तमिल आतंकवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स आॅफ तमिल ईलम यानि लिट्टे के बीच होने वाला यह चैथा युद्व है । जिसे चलते हुए 28 महीना बीत चुका है और इस लड़ाई में लिट्टे बुरी तरह से हार रहा है। लिट्टे की कथित प्रशासनिक राजधानी किलोनोच्चि पर सेना ने विगत दो जनवरी को कब्जा कर लिया है। जिससे लिट्टे संगठन की कमर पूरी तरह टूट गई है । लिट्टे सुप्रीमो वेलुपिल्लई प्रभाकरण जान बचाकर भाग रहा है । उसके सामने अब केवल दो ही विकल्प हैं आत्महत्या या श्रीलंका से पलायन । सेना को लगातार मिल रही सफलता से श्रीलंका सरकार को लग रहा है कि जल्द ही सेना का मुल्लैतिव पर कब्जा हो जाएगा । उतरी प्रांत में सेना को महती सफलता 20 नवम्बर को प्राप्त हुई थी । उस दिन सेना ने पाॅनरिन पर अधिकार कर लिया था । सेना की जीत को इसी से समझा जा सकता है कि पिछले 15 वर्ष से पाॅनरिन पर लिट्टे का कब्जा था । चतुर्थ ईलम युद्ध जुलाई 2006 में आरम्भ हुआ था। उस समय श्रीलंका का पूर्वी प्रान्त लिट्टे के प्रभाव क्षेत्र में था तथा उत्तरी प्रांत के कई जिले उनके पूर्ण नियंत्रण में था। मन्नार ,बावुनिया , किलोनोच्चि , मुलाइथिव ऐसे ही जिले थे। जाफना पायद्वीप लिट्टे के कारण सरकार व सेना की पहुंच से बाहर हो गया था 28 महीने के इस युद्ध ने यहां की तस्वीर को पूरी तरह बदल दिया है । चतुर्थ ईलम युद्ध में श्रीलंका की सेना अधिक तैयारी और दृढ़ संकल्प के साथ उतरी थी जिसके चलते लिट्टे के कड़े प्रतिरोध के बावजुद सेना ने इतनी बड़ी सफलता प्राप्त कर है। सन 1956 में सिंहलियों और तमिलों में टकराव शुरू हुआ था जो अब तक जारी है । श्रीलंका 1948 में इंगलैड से आजाद हुआ था । 1956 तक आते -आते सिंहलियों और तमिलों के बीच गहरी खाई पैदा हो गई । बहुसंख्यक सिंहलियों के द्वारा तमिलों को दूसरे दर्जे का नागरिक माना गया और उन पर अत्याचार शुरू कर दिया । 1956 के बाद श्रीलंका में कई जातीय हिंसा हुई। जिसमें तमिलों को अपनी संपति और जान गंवानी पड़ी । तमिलों के खिलाफ 1956 ,1958 ,1977 ,1981 , और 1983 में भयानक दंगे हुए जिसमें हजारों तमिल मारे गए या धायल हुए । लगातार अपमान , कुंठा , निराशा , दोयम दर्जे का नागरिक होने की शर्म तथा सरकारी बेरूखी ने अलगाववाद की आग को तेज कर दिया और 70 के दशक में अलगाववादी तमिल संगठन लिट्टे अस्तित्व में आया । श्रीलंका तमिलों के प्रति भारतीय सरकार और नागरिक ,खासकर तमिलों की गहरी सहानभुति रही है। माना तो यह जाता है कि लिट्टे का प्रारंभिक प्रशिक्षण भारतीय सेना के साथ हुआ था । भारत सरकार श्रीलंका समस्या के समाधान के लिए कई बार प्रयाास भी किया लेकिन समस्या सुलझ न सकी । लिट्टे को तमिल सहित विश्व के कई संगठन और देशों से गुपचुप सहयोग और धन मिलता रहा था । लेकिन 21 मई 1991 को हुई भारत के प्रंधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में लिट्टे का हाथ था । इस धटना के बाद से लिट्टे के लिए भारत में भी कोई सहानभुति नहीं बची है। तमिलों पर अत्याचार पर हमेशा बोलने वाले दक्षिण की प्रमुख पार्टियों का समर्थन भी लिट्टे खो चुकी है । सिर्फ वाइको और रामदोस जैसे नेता तमिलों पर अत्याचार पर हमेशा बोलने वाले दक्षिण की प्रमुख पाटियों का समर्थन भी लिट्टे खो चुकी है । सिर्फ वाइको और रामदोस जैसे नेता तमिलों पर अत्याचार पर कुछ बोल रहे हैं। द्रमुक भी चुप्पी साधे हुए है। अमेरिका में हुए 9/11 की आतंकवादी हमले से पहले श्रीलंका में लिट्टे काफी मजबूत स्थिति में था लेकिन 9/11 के बाद हालात बदल गया । लिट्टे आतंकवादी संगठन धोषित हो गया और उसे वियतनाम , दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों, विधटित सोवियत संध के छोटे देशों और म्यांमार से हथियारों के मिलना आसान नहीं रहा । इस स्थिति का फायदा श्रीलंका ने खूब उठाया । इस स्थिति का फायदा श्रीलंका ने खूब उठाया । उसने अपने सैनिक और हथियारों की शक्ति को इस बीच में खूब बढ़ाया । इसके अलावा लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण का करीबी कमांडर करूणा का अलग होकर सरकार से मिल जाना लिट्टे के पतन का एक और प्रमुख कारण है । माना जाता है कि श्रीलंका सेना की शक्ति इतनी नहीं बढ़ गई है कि वह लिट्टे को इतनी जल्दी और तेजी से पराजित कर दे । चूंकि करूणा का सरकार से मिल जाने की वजह से श्रीलंका सेना को लिट्टे के गुप्त ठिकानों का पता चल गया है इसलिए ऐसा संभव हो रहा है । करूणा ने लिट्टे नैसेना को खड़ा किया था । वह अपने हजारों समर्थकों के साथ 2004 में लिट्टे से अलग हो गया । करूणा से मिली पक्की सूचनाओं के आधार पर सेना ने लिट्टे ठिकानों को नेस्तानाबूद करने में कामयाबी हासिल की । करूणा का अलग होना लिट्टे के लिए बड़ा आधात था श्रीलंका में सरकारी सेना अब निर्णायक लड़ाई की तरफ है । ऐसे में लिट्टे जरूर चाहता है कि पीड़ित भारत में शरण लें । शरणार्थियों की आड़ में वह अपने कुछ कैडर भी भारत भेज सकता है ताकि वे हथियारों और धन की व्यवस्था कर सकें। एक आशंका यह भी है कि पूर्ण पराजय की सूरत में प्रभाकरण अपने पत्नी और दोनों बच्चों के साथ भारत भाग जाए । हालांकि भारत में उसकी दाल गलती नजर नहीं आ रही है , लेकिन यह संभव है कि वह भारत में सक्रिय नक्सलियों से पनाह मांगे । लिट्टे ने भारतीय नक्सलियों की हथियारों से काफी मदद की है और उसी का वास्ता देकर वह नक्सलियों के प्रभाव वाले जंगलों में छुप सकता है । ऐसा भी संभव है कि प्रभाकरण इंडोनेशिया या मलेशिया भी पलायन कर सकता है । साथ ही यह भी संभावना बनती है कि लिट्टे की परंपरा के अनुसार वह आत्महत्या ही न कर लें । पंभाकरण हारी बाजी जीतने की क्षमता रखता है । लेकिन अब किसी भी तरह से श्रीलंका की स्थिति सुधरनी चाहिए । ब्रिटेन द्वारा बोए गए बांटो और राज करो की नीति को वहां की नागरिकों को अब समझना चाहिए और शांति के लिए प्रयास करने चाहिए । दुर्भाग्य से सिंहलियों और तमिल दोनों का मूल भारत ही रहा है ।

मंगलवार, जनवरी 06, 2009