गुरुवार, अक्तूबर 22, 2009

दिल्ली शहर की ट्रैफिक के हाल

दिल्ली शहर को विश्वस्तरीय बनाने का प्रयास लगातार हो रहा है। क्योंकि यह देश की राजधानी है। देश की राजधानी को अच्छा होना भी चाहिए। लेकिन यहां के ट्रैफिक की हालात अत्यंत ही दयनीय है। जिसे दुरूस्त किए बगैर दिल्ली को षायद विष्वस्तरीय नहीं बनाया जा सके। सड़कों पर आए दिन जाम लगती रहती है। रोड रोज की धटना धटती है और दुर्धटना होती रहती है। साथ ही और कई तरह के समस्याओं से लोगों को दो-चार होना पड़ता है। जाम का आलम यह कि आज-कल हर कोई कहीं न कहीं ट्रैफिक जाम में जरूर फंस जाता है। क्योंकि अगर सड़क पर जाम लगती है तो यह कब खत्म होगी यह कोई कहने की स्थिति में नहीं होता हैं। दिल्ली की सार्वजनिक पविहन व्यवस्था की हालात तो और भी खराब है। दिल्ली विष्वद्यिालय के उत्तरी परिसर से अगर आप षाम को गुड़गांव के लिए निकलते हैं तो आप कितने धंटे में वहां पहुचेंगं यह कहना मुष्किल है। जबकि दिल्ली से गुड़गांव की दूरी बहुत ही कम है। दिल्ली में ट्रॅफिक की यह समस्या तब है जब यहां कई फलाईओवर बना दिए गए हैं। रोज नित नई सड़कें बन रही हैं। अगर किसी व्यक्ति को बस पकड़ कर कहीं जाना है तो बस कब तक आएगा यह कोई ठीक से नहीं कह सकता है। जो बस आएगा भी उसमें आप चढ़ पाने लायक होंगें कि नहीं यह कहना बहुत ही मुष्किल है। कभी- कभी तो वह बस स्टाॅप पर रूके बगौर चली जाती है। फिर इंतजार करते रहिए आधा एक धंटा। अगली बस आने का। अगर आप बस में चढ़ भी जाते हैं तो बस में चढ़ने वाले को यह पता ही होगा कि लोगों से खचाखच भरी बस में सांस लेना भी कितना मुष्किल होता है। कई रूट तो ऐसा है जिस पर जेब तराष अति सक्रिय हैं। दिल्ली पुलिस की लापरवाही का आलम यह है कि वो जेबतराष को पकड़ने के लिए कोई खास प्रयास नहीं करती है। जिस वजह से यह जेब तराष बेखौफ होकर बसों में धुमते हैं। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में जिस तरह से बस की हालात खराब है उसी तरह से आॅटो की स्थिति किसी प्रकार से ठीक नहीं कही जा सकती है। अगर आॅफिस के समय आप घर से निकलते हैं और सभी बसें भरी हुई आ रही है तो ऐसे में लोगों को आॅटो का ही सहारा बच जाता है। लेकिन ऐसी परिस्थिति में कभी-कभी लोगों को आॅटो नहीं भी मिलता है। संयोगवष अगर वह आपको मिल भी जाए है तो आॅटो वाला मीटर से चलने को राजी नहीं होगा। मीटर खराब है। यह उसका कहना होगा। उसके मनर्जी के अनुसार किराया दिजिए तब तो आप अपने गंतव्य तक जा सकते हैं। वरना बैठे ही रहिए बस स्टाॅप पर। आॅटो वाले के लिए हालांकि नियम बना हुआ है कि वह मीटर से ही चले लेकिन कोई भी इसका पालन नहीं करता है। आम आदमी को आॅिफस पहुंचने की जल्दी होती है। इसलिए कोई भी इसके विरोध में आवाज नहीं उठाता। ऐसा नहीं है कि आवाज उठाने वाला आदमी बिल्कुल नहीं है। लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि आम आदमी द्वारा किए गए ष्किायत पर कितनी कारवाई आज तक वास्तव में हुई है। बस और आॅटो की यह हालात तब है जब दिल्ली की एक बड़ी आबादी इन्हीं सार्वजनिक परिवहन का लाभ लेते हैं। आए दिन सड़क पर कोई न कोई दुर्धटना धटती रहती है। नीजि और सार्वजनिक दोनों परिवहन ट्रैफिक नियम का ठीक से पालन नहीं करते हैं। इन नियमों को उनसे ठीक से पालन करवाना टै्रफिक वालों का दायित्व बनता है। जिससे आए दिन सड़कों पर रोड रेज की धटना और नित हो रही दुर्धटना में कमी आए। इसके लिए लोगों को टै्रफिक नियमों की जानकारी का पूर्ण प्रषिक्षण समय समय पर दिया जाना चाहिए। कई बार सड़कों पर समस्या इन जानकारियों के नहीं रहने से भी होता है। डाइवरी लाइसेंस देने में धांधली जग जाहिर है। इसलिए परिवहन लाइसेंस में दलाली को यथा षीध्र बंद करवाना चाहिए। इससे प्रषिक्षित चालक ही सड़कों पर गाड़ी चला सकंगंे जिससे सड़कों पर हो रही दुर्धटना को कमी आएगी। बड़े वाहन छोटे और पैदल यात्रियांे को कुछ नहीं समझते। जबकि उन्हें इनका सम्मान करना चाहिए। आज सड़कों पर पैदल यात्रीयों की संख्या बहुत ज्यादा है। अक्सर जल्दीबाजी और कई वजहों से पैदल और छोटे वाहनों के अधिकारांे का हनन होता है। दिल्ली यातायात पुलिस इन लोगों के अधिकार के लिए समय समय पर जो प्रयास करता हैं वो सराहनीय हैं। लेकिन अभी इस में सुधार की काफी गुंजाइष बाकी है। आजकल आम जनता भी अपनी बिजली पानी की समस्या के लिए सड़क जाम करते हैं। यह ट्रैफिक समस्या को और बढ़ाने का काम करता है। आम आदमी द्वारा सड़क जाम करना कहां तक जायज-नाजायज है यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन ऐसे में सड़क पर चल रहे लोगों की दिक्कतें अवष्य बढ़ जाती है। अगर कोई ऐसा उपाय ढूंढ़ा जा सके जिससे सड़क जाम होने की नौबत न आए तो बेहतर होगा। रोज सड़क पर कई नई गाड़ियां षामिल हो रही है। ऐसे कार वाले यहां ज्यादा हैं जो अकेला ही यात्रा करते हैं। उनकी गाड़ी सड़क का बहुत बड़ा हिस्सा लेती है। जिससे सड़क पर भीड़ बढ़ रहा है। ऐसे में सड़क का छोटा पड़ जाना स्वाभाविक ही है। दिल्ली में कारों की संख्या बहुत है। अगर कार वालों को अच्छा सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था उपल्बध कराया जाय तो निष्चित तौर पर बहुत सारे लोग कार छोड़ देंगें और सार्वजनिक परिवहन में यात्रा करने लगेंगे। इससे यातायात की बहुत सारी समस्या का स्वतः हल हो जाएगा। इसके अलावा दिल्ली में कई ऐसी सड़कें हैं जहां अभी भी अतिक्रमण है। सड़क के किनारे पटरी लगाई जाती है। सरकारी तंत्र अगर सिर्फ मूक दर्षक नहीं रहे और इन अतिक्रमणों को हटा दे ंतो सड़क पर गाड़ियों की चाल में अवष्य र्फक देखने को मिल सकता है। षहर में मेट्रो के आने से लोगों को थोड़ी राहत तो जरूर मिल जाएगी। लेकिन परिवहन व्यवस्था को सुधारने का दूसरा प्रयास भी जारी रहना चाहिए। जिससे लोग समय पर सुरक्षित अपने घरों को लौट सके। दिल्ली को अगर विष्वस्तरीय षहर बनाना है तो निष्चित तौर पर सबसे पहले यहां की परिवहन व्यवस्था में सुधार लाना होगा। खासकर सार्वजनिक परिवहन में। सरकार के परिवहन विभाग से इतनी सुधार की उम्मीद तो हरेक नागरिक करता ही है। अब इस उम्मीद पर खरा उतरना सरकार का काम है।

कोई टिप्पणी नहीं: