बुधवार, मार्च 04, 2009

सूरजकुंड के बहाने दो बात...

सूरजकुंड के बहाने दो बात... ‘‘इस कुंड की यह दुर्दशा! ’’ सुरजकुंड को देखकर सहसा ही अमित के मुंह से यह निकल गया । अमित अपने दोस्तों के साथ यहां धूमने के लिए आया है। मेला देखने के बाद वह पास के सुरज कुंड को देखने चला गया। इस जगह को देखने के बाद उसे इसका सहज अंदाजा हो गया कि इसकी भी कभी रौनक रही होगी । सूरजकुंड का इतिहास काफी पुराना है। इसे तोमर किंग अनंगपाल ने बनवाया था। यह तुगलकाबाद से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । 1020 ईस्वी में बने इस वृताकार कुंड मंे भगवान सूर्य का भव्य मंदिर हुआ करता था। इसलिए इसे सूरज कुंड के नाम से जाना जाता है । बाद में दिल्ली पर सल्तनत वंश का राज्य हो गया। जिसके बाद अरावली पर नगर बसाया गया । और इस कुंड में पानी को संरक्षित रखा जाने लगा ताकि रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा किया जा सके । आज यह कुंड पूरी तरह से सुखा पड़ा है। इसमें पानी की एक बूंद भी नहीं है। जब फरीदाबाद और आस-पास के इलाकों में पीने का पानी न मिलता हो तो भला इतने बड़े कुंड में पानी कैसे होगा? इस कुंड की सीढ़ीयां इसकी महानता की कहानी खुद-ब-खुद बयान करती है। हालांकि इसकी हालात जर्जर हो चुकी है लेकिन स्थापत्य के इस बेजोड़ नमूना यह कहती है कि कभी इसके भी दिन सुनहरे रहे होगंे। आज हालत ऐसे हैं कि यहां कुछ जोड़ीयों को रंगरेलियां मनाते हमेशा देखा जा सकता है। यहां बंदरों की फौज भी बड़ी संख्या मे देखी जाती है। इन्हें यहां आए मेहमान से खाने- पीने को मिल जाता है। अमित के साथी रवि भारती इस कुंड की सीढ़ीयोें पर बैठने के साथ ही बोल उठता है- यार प्रशासन इस कुंड की इतनी उपेक्षा क्यों कर रही है? माना कि यहां पानी की समस्या है लेकिन इस ऐतिहासिक कंुड को अवश्य संरक्षण दिया जाना चाहिए। जिससे यहां दिल्ली आने वाले पर्यटक इसे भी देखने को आएं । नहीं तो कछ दिन बाद इस कुंड की सीढ़ीयों में लगे ईंट तक गायब होने लगेंगें। अमित बस मुस्कुरा कर रह गया।

अपना विचार।

1986 में शुरू हुआ शुरू हुआ सूरज कुंड मेला अपनी लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ चुका है। हर साल यहां आने वाले पयर्टकों की संख्या में अच्छी खासी वृद्धि हो रही है। यह मेला हस्तश्ल्पि , वास्तुकला, और लोकनृत्यों का अनोखा संगम है। यहां आने वाले वास्तुशिल्पी, हस्तशिल्पी, और लोकनर्तकों के चेहरे की संतुष्टि इशारे में ही बहुत कुछ बता जाती है। लोकनर्तकों के साथ फोटो ख्ंिाचवाने के लिए जब कोई जाता है तो वे बहुत खुश होते हैं। मेले में मिल रहे मान, सम्मान और मेहनताना से हस्तशिल्पी, वास्तुशिल्पी और नर्तक, सब काफी प्रसन्न हैं। मेले की सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चाक-चैबन्द दिखती है। मेले में प्रशासन की मुस्तैदी लोगों को सुरक्षा से बेफ्रिक करती है। आज जब पूरे समाज से मेले शब्द की धारणा खत्म होती जा रही है इस माहौल में हरियाणा सरकार द्वारा इतने बड़े मेले का सालाना सफल आयोजन वाकई एक सराहनीय प्रयास है। लेकिन मेले में महंगे खाने के स्टॅाल और 50 रूपये की टिकटें कहीं न कहीं आम आदमी को मेले में आने से रोकती है। भले ही मेला प्रशासन के अपने कुछ तर्क और मजबूरीयां हो, लेकिन अगर खाने के दामों और टिकट में कमी हो सके तो आम आदमी भी इस मेले का भरपूर मजा उठा सकता है। राज्य सरकार को इस और अवश्य ही ध्यान देना चाहिए?

झलकियां

1 मेले परिसर के बाहर गाड़ी पार्किंग की व्यवस्था की गई थी। लेकिन अजीबोगरीब स्थिति तब पैदा हो गई जब एक कार वाला गाड़ी पार्क करने को लेकर दूसरे कारवाले से बुरी तरह से उलझ गया। दोनों कारों में सवार परिवार वालों के बीच- बचाव के बाद मामला शांत हुआ।

2 पूरे मेले परिसर में खाना बहुत ही मंहगा था। यहां तक की बाजार में उपलब्ध 4 रूपये की चाय यहां 10 रूपये में मिल रही थी। दिन चढ़ने के बाद भी काफी लोगों ने वहां खाना नहीं खाया। और ‘भूखे भजन न होई गोपाला’। नतीजा वे सब जल्दी घर को लौट रहे थे।

3 मेले में आए विदेशी सैलानियों ने यहां राजस्थान का मजा लिया। उन्होनें जमकर उंट की सवारी की। पांव में धुंधुरू और शानदार ढ़ंग से सजाए गए उंट बहुत ही आकर्षक लग रहे थे ।

4 मेले की भीड़ से अलग मीडिया सेंटर की व्यवस्था की गई थी। यहां का माहौल बिल्कुल शांत था। चाय- पानी की भी व्यवस्था रहने के कारण मीडियाकर्मीयों को यहां पीते-पिलाते देखा गया।

5 आईआईएमसी के छात्रों को लाने और ले जाने के लिए बस की व्यवस्था की गई थी। जाते वक्त अन्ताक्षरी की घुनों ने माहौल को जानदार बना दिया। लेकिन आते समय छात्र इतने थक गए थे कि कइयों के मुंह से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी।

6 मेले में इस बार पहली बार मिस्र शामिल हुआ था। यह विशेष आकर्षण का केन्द्र भी रहा । यहां से आए प्रतिनिघि मिल रहे सम्मान से काफी खुश थें।

सूरज कुंडमेला

विश्व प्रसिद्ध सूरजकुंड मेला हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी आयोजित किया गया। इस मेले का उदधाटन देश के राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने किया । यह मेला केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय और हरियाणा राज्य पर्यटन मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से करवाया जाता है ।यह मेला दिल्ली से सात किलोमीटर दूर हरियाणा के फरीदाबाद जिले में मनाया जाता है। हर वर्ष फरवरी माह में ही यह मेला लगता है। इस मेले में हस्तशिल्पीयों और वास्तुशिल्पीयों को एक मंच प्रदान किया जाता है । जिससे वे लोग ग्राहक से सीघा संपर्क करते हैं। इस मेले में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी होती है। पिछले वर्ष यहां सात लाख से अधिक लोग आए थे । जिनमें से 25,000 हजार विदेशी नागरिक थे । इस वर्ष उम्मीद है कि कम से कम साढ़े सात लाख व्यक्ति इस मेले का लुफत उठाएंगें ।इसमें विदेशी सैलानियों की संख्या पिछले वर्षों से ज्यादा होने की संभावना है। हालांकि मेला अधिकारी राकेश जून ने बातचीत में विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का असर इस मेले पर भी पड़ने की आशंका व्यक्त किया है लेकिन आने वाले भीड़ से वह उत्साहित हैं। रविवार को इस मेल को देखने के लिए लगभग 1से डेढ़ लाख व्यक्ति यहां पहुंचते हैं । इस मेले को देखने वाले में दिल्ली एनसीआर जिसमें नोएडा, ग्रेटर नॉएडा ,गुड़गांव ,साहिबाबाद ,से बड़ी संख्या में लोग आते हैं । यह मेला 400 एकड़में फैले प्रकृति की गोद में होती है। 1986 से शुरू हुआ यह मेला लोकनृत्यों के प्रेमी के आकर्षण का विशेष केन्द्र भी रहा है । इस वर्ष यहां उड़ीसा ,असम ,पंजाब ,हरियाणा, गुजरात और राजस्थान के लोक कलाकार आए हुए हैं। यहां विभन्न कलाकारों के नृत्य और सेगीत का मजा लेने वालों की हर साल काफी भीड़ उमड़ती है। यहां पंताबी और हरियाणवी संगीत पर लोगों को झूमते हुए जगह-जगह आसानी से देखे जा सकते हैं। इन नृत्यों के लिए सूरजकुंड में एक चैपाल बना हुआ है। जहां यह कलाकार अपने कला का प्रदर्शन करते हैं। यहां आए कलाकारों को इस मेले से 10से 30 हजार तक की कमई आसानी से हो जाती है सूरजकुंड के मेले में 50 रूपये का प्रवेश शुल्क रखा गया है। लेकिन विदयार्थीयों के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। पिछले वर्ष इस मेले में टिकट बेचकर 15,937हजार डाॅलर की आमदनी हुई थी। यहां आए हस्तशिल्पीयों और वास्तुशिल्पीयों का सामान भी खुब बिकता है जिसमें उन्हें अच्छी खासी आमदनी होती है । इस मेले में इस बार मेले का विशेष आकर्षण का केन्द्र मिस्र का पंडाल रहा। वह इस मेले में विशेष आमंत्रित देश हैं। वहांसे आए प्रतिनिधि ने बातचीत में बताया कि यहां जितना हमें सम्मान मिला है मैं उससे अभिभूत हूं। मैं हर साल यहां आना चाहूंगा। मिस्र के साथ-साथ इस मेले में सार्क के भी सभी देश शामिल हुए हैं। सार्क देशों के पंडाल को देखने के लिए भी दर्शकों की भाड़ी भीड़ उमड़ती है। मघ्यप्रदेश इस बार मेले का थीम था। जिससे मघ्यप्रदेश पंडाल मेलेमें आए हरेक व्यक्ति देखना कतई नहीं भूलता है। पूरे मेला परिसर में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चैबन्द है। चप्पे-चप्पे पर प्रशासन की पूरी नजर है । जगह-जगह सीसी टीवी के कैमरे लगे हुए हैं ।मेले के बाहर अगिनशमन की गाडियां किसी भी विशेष परिस्थितियों के लिए खड़ी है। साथ ही मेले में डाक और एटीएम जैसी सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई है। परिसर के बाहर गाड़ी पार्किंग के लिए बड़ी जगह है। जहां लोग अपनी गाड़ी खड़ी करते हैं ।रविवार को यहां लगभग 30हजार के करीब वाहन आ जाते हैं

विश्व सुरक्षा एंव क्षेत्रीय संगठन

चंदन कुमार चैधरी, नई दिल्ली - आज विश्व में कई क्षेत्रीय संगठन है। जिसके अपने अलग -अलग हित हैं। लेकिन इन क्षेत्रीय संगठनों के बनने से विश्व की सुरक्षा एंव शान्ति मे बढ़ोतरी हुई है। द्वितीय विश्व युद्ध ने विश्व में सुरक्षा और शान्ति को ध्वस्त कर दिया था । जिससे सबक लेते हुए अमरीका, रूस , फांस आदि महाशक्तियों ने व्यवहारिक कदम उठाते हुए मानव अस्तित्व की रक्षा के लिए 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना किया था । 1945 में ही गठित अरब लीग से लेकर 2008 में बने यूनासूर तक कई क्षेत्रीय संगठन अपने उद्देश्य के साथ शांति और सुरक्षा के कार्य में लगे हुए हैं क्षेत्रीय संगठन की उपयोगिता अमरीकी सीनेटर वेण्डनबर्ग के अमरीकी संसद कांग्रेस के उच्च सदन सीनेट में दिए गए इस बयान से साबित होता हैः- शक्ति को शक्ति द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है । हमें विश्व को द्विध्रुवीय से बहुध्रुवीय बनाना होगा , जिससे शक्तियां विकेन्द्रित रहेंगी । संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपने चार्टर के अनुच्छेद 33 में क्षेत्रीय संगठनों की उपयोगिता को स्वीकार करके मान्यता दी गई है । संध की मान्यता है कि क्षेत्रीय संगठन के सहयोग से शान्ति ,विकास , और सुरक्षात्मक कार्यों को विश्व में आगे बढाया जा सकेगा ।

विश्व में कई क्षेत्रीय संगठन है जिनमें से कुछ अरब लीग, अमेरीकी राज्यों का संगठन जिसे संक्षेप में ओ,ए,एस कहा जाता है , यूरोपीय आर्थिक समुदाय , अफ्रीकी एकता संघ , आसियान, गल्फ सहयोग परिषद , दक्षिण एश्यिा सहयोग संगठन यानि सार्क , एशिया -प्रशांत आर्थिक सहयोग संघ, हिमतक्षेस ,यूनासुर प्रमुख हैं । इनके सहयोग से संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व सुरक्षा एंव शान्ति को बढ़ावा देने में ज्यादा सफल साबित हो रही है। यह संगठन क्षेत्रीय हितों के साथ-साथ सम्पूर्ण मानवता के लिए जैसं मानव अधिकार , विश्व कल्याण ,मुक्त बाजार और अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के उन्मूलन के लिए भी कार्य कर रहा है।

मीडिया पर मंदी का असर पड़ेगा

मीडिया पर मंदी का असर पड़ेगा भारतीय जनसंचार संस्थान के रेडियो और टेलीविजन विभाग में सह आचार्य शाश्वती गोस्वामी का कहना है कि मीडिया पुरी तरह से विज्ञापन पर निर्भर है । मंदी की वजह से मीडिया सेक्टर को विज्ञापन नहीं मिल रहा है जिससे इस विभाग में आगें कुछ दिनों के लिए भर्ती में कमी हो सकती है या बंद भी हो सकता है । साथ ही मीडिया सेक्टर को विज्ञापन प्राप्त करने के नए तरीके भी ढूंढने पर सकते हैं। यह बातें उन्होनें एक साक्षात्कार में कही है । इसी साक्षात्कार में उन्होनें कहा कि मीडिया के स्तर में पिछले दिनों आई गिरावट के लिए बाजार जिम्मेदार है । जो लोग मीडिया को चलाते हैं उन्हें लगता है कि एक पे्रज थ्री वाला कल्चर बनाया जाय जिससे हमें ज्यादा फायदा पहुंचेगा । ऐसाा सच है नहीं। इस तरह से लोगों की संवेदनसीलता खत्म करने की कोशिश की जा रही है । हमारे यहां माॅल संस्कृति विकसित करने की कोशिश की जा रही है जो एक अजीब तरह की संस्कृृति है । भारतीय घरों में इस का माहौल है नहीं फिर भी लाग धुलमिल गए हैं । बाजार सोचता है कि माॅल होगा तो विज्ञापन होगा और विज्ञापन होगा तो मीडिया चलेगा अतः ज्यादा दुख की बातें मीडिया में न हो जिससे लोग सहम जांए। इसलिए मीडिया के स्तर में पिछले दिनों गिरावट आई है । मीडिया का गिरावट समाज के साथ होता है । यह एक चक्र की तरह है जिसमें मीडिया समाज के साथ ही चलता है ।

इसी साक्षात्कार में महिलाओं की नाकारात्मक छवि मीडिया द्वारा पेश किए जाते रहने का सिलसिला इस वर्ष थमने से उन्होंने इन्कार कर दिया। उन्होनें कहा कि महिला को एक उपभोग की वस्तु की तरह पेश किया गया है । इसे रोकने के लिए कोई कानून लाने से कुछ नहीं होगा । इसे रोकने के लिए जनता की मानसिकता बदलना होगा । क्योंकि मीडिया जनता की भावना को ही जगह देती है । जनता बदलेगी तो मीडिया भी अवश्य बदलेगा

पूर्वोतर से जुड़े एक सवाल की जवाब में उन्होनें कहा कि पूर्वोतर एक बात है लेकिन लेकिन उसमें 7 राज्य है । हरेक राज्य की संस्कृृति अलग है । समस्या अलग है अभी तक तो मीडिया की रिपोर्टिंग बहुत खराब रहा है । इससे पूर्वोतर मुख्यधारा में शामिल नहीे हो पाएगा । ऐसे में पत्रकारों को चाहिए कि वो समस्या को पहचाने । और उसी तरह की रिपोर्टिंग करे । सभी तरह की मीडिया माघ्यमों में इस वर्ष श्रीमती गोस्वामी एफएम रेडियो को आगे देख रहीं हैं । उनका मानना है कि अखबार तो रहेगा ही लेकिन फिलहाल दो तीन वर्ष एफ एम रेडियो का धूम धडाका जमके चलेगा भविष्य की पत्रकारिता की जिम्मेदारी वह पीढी के युवा पत्रकारों के कंधे पर डालते हुए कहती हैं कि वर्ष 2009 में जो पत्रकार बनकर बाहर जाए वह थोड़ी जवाबदेही से काम करें । साथ ही यह भी ध्यान रखें कि यह न्यूज किसी के काम आएंगंे कि नहीं।