गुरुवार, अप्रैल 09, 2009

वनवास से लौटकर कहां जाएंगे ब्राह्मण

लोक सभा चुनाव की घोषणा होने के साथ ही बिहार की सभी पाटियां जाति की गोटी फिट करने में लग गयी है,क्योंकि बिहार में जाति के आधार पर चुनाव होता है। हरेक पार्टी के पास किसी न किसी जाति का वोट बैंक होता है। जहां राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू यादव माई समीकरण पर निर्भर हैं,वहीं नीतीश कुमार हम पर समीकरण पर।
इस बार बिहार में जद यू भाजपा गठबंधन से आरजेडी लोजपा गठबंधन का सीधा मुकाबला होना है । इन दोनों गठबंधन में बा्रह्मण कहीं भी वोट बैंक के रुप में नहीं है। बिहार की राजनीति में कभी ब्राह्मणों की तूती बोलती थी । यहां जग्ग्नाथ मिश्रा,भागवत झा आजाद सहित कई ब्राह्मण नेता मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लेकिन लालू यादव के 1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद यह समुदाय उपेक्षित होता चला गया। 90 के दशक में ब्राह्मणों के उपेक्षित होने में मंडल,कमंडल की राजनीति बहुत महत्वपूर्ण रही है। लालू यादव ने यहां अपनी एक ऐसी छवि बनाई जिस फल का स्वाद वो आज तक चख रहें हैं ।
बिहार में राममनोहर लोहिया के तीनों शिष्य लालू यादव,नीतीश कुमार ओर रामविलास पासवान ने बिहार को जिस वर्ग में बांट दिया उसमें बाह्मण समुदाय कहीं नहीं था । भाजपा जरुर ब्राह्मणों को साथ लेकर चल रही है लेकिन इस वर्ग का एक बड़ा समुदाय यह मान कर चल रहा है कि भाजपा नीतीश की हाथ का कठपुतली हो गई है। जिससे ब्राह्मणों का भाजपा से मोह भंग होने लगा है।
बिहार के लोकसभा चुनाव में सभी पार्टियों ने ब्राह्मण उस हिसाब से टिकट नहीं दिया है। जनता दल यू ने अपने कोटे के 25 लोक सभा सीट में से एक भी टिकट ब्राह्मणों को नहीं दिया है। जबकि भाजपा ने 15 में से सिर्फ दो टिकट ब्राह्मण को दिया है । जदयू ने 2004 के चुनाव में मात्र एक सीट ब्राह्मण क ो दिया था, जो झंझारपुर से पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा थे । उस चुनाव में वह लगभग पांच हजार मतों से चुनाव हार गए थे। इस बार के चुनाव में उस सीट से जदयू ने मिश्रा को टिकट न देकर मंगनी लाल मंडल को दे दिया है। जदयू ब्राह्मण को टिकट न दिए जाने पर कहती है कि मीडिया यह क्यों भूल जाती है कि हमने शिवानंद तिवारी को राज्यसभा में भेजा हुआ है, जबकि हमारी सहयेगी पार्टी बीजेपी ने दो टिकट ब्राह्मण को दिया ही है।
बिहार में ब्राह्मण समुदाय अपने को उपेक्षित महसूस क रने लगे हैं। ऐसे में लालू यादव ने ब्राह्मण के आगे चुग्गा फेंका है। गरीब ब्राह्मण को आरक्षण देने का चारा शायद ब्राह्मण को लुभा सकता है क्योंकि ब्राह्मण समुदाय नीतीश द्वारा पिछड़े समुदाय को सुविधा देने से डरे हुए हैं। उन्हें लगने लगा है कि लालू यादव सिर्फ ब्राहमणों के खिलाफ बयान देते थे जबकि नीतीश उनके हित के खिलाफ काम कर रहें हैं ऐसे में अगर उपेक्षित ब्राह्मण राजद के साथ चला जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। ऐसे में बिहार की राजनीति में फिर से कुछ परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
अभी तक का हालात ऐसा है कि सभी पार्टी ब्राह्मण को साथ लाने में डर रहे हैं कि इससे कहीं बाकी जाति उनसे दूर न हो जाएं । ऐसे में ब्राह्मण विरोध से ही पैदा हुए लालू ब्राह्मण को साथ लाने का प्रयास कर रहे हैं। यह प्रयास लालू के हित में कितना रहता है यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल पाएगा । फिलहाल लालू का यह प्रयास क्या उनके द्वारा ब्राह्मण समुदाय को दिया गया बनवास की समाप्ति साबित होगी।
चन्दन कुमार चौधरी

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