सोमवार, अप्रैल 20, 2009

तमिल मुद्दा पर राजनीती

लोक सभा चुनाव के मद्दे नजर वर्तमान समय में सभी पार्टी क्षेत्रीय और राष्टÑीय मुद्दे के ऊपर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन देश में एक ऐसा राज्य भी है जहां पड़ोसी राष्ट्र का मुद्दा छाया हुआ है। दक्षिण का वह राज्य तमिलनाडू है जहां श्रीलंका का तमिल समस्या पर चुनावी बिसात बिछाई जा रही है।श्रीलंका के तमिल मसले पर भारत में कई वर्षों से राजनीति होती आ रही है। श्रीलंकन तमिल का मसला बहुत ही संवेदनसील मसला है। इस वजह से हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या तक हो गई थी। एलटीटीई को उनके प्रधानमंत्री रहते हुए श्रीलंका नीति पसंद नही आई। जिस वजह से 20 मई 1991 को एलटीटीई ने उनकी हत्या कर डाली तमिलनाडू में इस बार लोकसभा चुनाव की घोषणा होने से पूर्व ही यह आभास होने लगा था कि चुनाव में श्रीलंका के तमिल जरूर अहम चुनावी मुद्दा होगा। जिस तरह से श्रीलंका में एलटीटीई के पांव उखड़ते चल जा रहा है, उनकी बैचेनी का असर तमिलनाडू में लोकसभा की तैयारियों में जुटे प्रमुख राजनीतिक दलों में दिखाई पड़ रहा है। तमिलनाडू में दो गठबंधन के बीच आमने-सामने का मुकाबला होना है, जिसमें डीएमके सुप्रीमो करूणानिधि और एआईएडीएमके प्रमुख जयललिता प्रमुख सेनापति हैं जिसके नेतृत्व में लड़ाई लड़ी जानी है। इस चुनाव में रामदास की पार्टी पीएमके पांच साल सत्ता सुख भोगने के बाद फिर से जयललिता के साथ खडेÞ हैं, क्योकिं इस पार्टी को इस बार लगा कि इस चुनाव में जयललिता, करूणानिधि के मुकाबले बीस साबित हो सकती है ऐसे में हमें फायदा मिल सकता है।चुनाव घोषणा से पूर्व ही राज्य के मुख्यमंत्री करूणनिधि ने तमिल कार्ड खेला था, जिसकी वजह से के न्द्र की राजनीति में हलचल मच गई थी। करूणानिधि राज्य में बिजली कि किल्लत से जनता का ध्यान बांटने के लिए यह हथकंडा अपनाया था जिसका उपयोग वर्तमान में वंहा की सभी पार्टी करने लगा है। तमिल मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जो तमिलनाडू के लोगों की भावना से जुड़ा हुआ है। यही वजह है कि वाइको वहां तमिल पर ही राजनीति करते हैं। कुछ दिन पहले वाइको ने खुलेआम यह कहा था कि अगर श्रीलंका में एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरण को कुछ हुआ तो देश में खून की नदियां बह जाएगी । वाइको का यह बयान पूरी तरह से राजनीतिक बयान है जो वहां क ी जनता को इमोशनल ब्लैकमेल कर रहा है। वाइको इस बार के चुनाव में जयललिता के साथ खड़े हैं। जयललिता खुद सदैव तमिल मसले से दूर रही है, लेकिन इस बार वो पूरी तरह से वाइक ो के साथ खड़ी दिख रही है। पिछले चुनाव में जयललिता को करारी शिकस्त खानी पड़ी थी । अत: इस बार के चुनाव में वह करू णानिधि को करारी मात देना चाहती है, जिसके वजह से वह भी इस मुद्दे पर वाइको के साथ पूरी तरह से खड़ी दिख रही है। लोकसभा की 39 सदस्यों वाली इस राज्य में जयललिता का प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब तभी पूरा हो सकता है जब क्षेत्रीय, राष्टÑीय और अन्तरराष्टÑीय मुद्दों को वह चुनाव में आजमाए।1996 के बाद से देश में गठबंधन की राजनीति जोरों पर है। केन्द्र में अब जो भी सरकार आती है वो गठबंधन की ही सरकार होती है। ऐसे में एक-एक सांसदों का महत्व बढ़ गया है। इस वजह से तमिलनाडू का केन्द्र की राजनीति में बहुत महत्व है । इस वजह से वहां की सभी पार्टी श्रीलंकन तमिल के मामले को भुना रहे हैं। अब ऐसे में वहां श्रीलंका के तमिल का मुद्दा चुनाव पर कितना प्रभाव छोड़ पाता है यह चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा

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