सोमवार, अप्रैल 20, 2009

vam morcha की halat

बंगाल में वाम मोर्चा तीन दशक से सत्ता पर काबिज है। वाम पार्टियों की सबसे बड़ी ताकत बंगाल ही है। पिछले लोकसभा चुनाव में वाम पार्टियों को आजादी के बाद अब तक की सबसे बड़ी सफलता मिली थी, जिसकी वजह से वह केन्द्र में किंग मेकर की भूमिका में रही । पश्चिम बंगाल और केरल की इस पार्टी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यह दोनों राज्य वाम पार्टियों का गढ़ है, जहां से इस पार्टी को शक्ति मिलती है। इस बार के चुनाव में वाम पार्टियों की हालत अपने ही गढ़ में ठीक नहीं लग रहा है। जहां केरल इस बात का गवाह रहा है कि वहां प्रत्येक पांच साल पर होने वाले चुनाव में सत्ता बदल जाती है। वहीं पश्चि बंगाल में ममता बनर्जी ने वाम पाटियों की नाक में दम कर रखा है। केरल ऐसा राज्य है जहां पिछले चुनाव में वाम पार्टियों को भारी सफलता मिली थी। अपने इतिहास के मुताबिक जैसा केरल में होता आया है, इस बार भी अगर ऐसा होता है तो इस पार्टी को इस बार वंहा भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके अलावा वहां इन पार्टियों की आन्तरिक कलह भी पार्टी को नुकसान अवश्य ही पहुचांएगी ही। वी एस अच्युतयानन्दन और पी विजयन के बीच का द्वन्द्व पार्टी के हित में कतई नहीं होगा। इसका नुकसान पार्टी को चुनाव में उठाना पड़ सकता है। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल वाम दलों का मजबूत किला है। जहां लम्बे समय से कोई भी पार्टी सेंध नहीं लगा सकी है। इस चुनाव में वाम के इसी गढ़ में लाल झंडा की हालत ममता बनर्जी ने खराब कर रखी है। ममता बनर्जी ने जिस तरह से नंदीग्राम और सिंगूर मामले में वहां नेतृत्व किया इससे ममता वहां काफी लोकप्रिय हो गई है। ममता बनर्जी को पिछले दो सालों में वहां काफी लोकप्रियता मिली है। उसने इस चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करके वाम दलों को कड़ी चुनौती पेश की है। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमुल कांग्रेस शहरी वर्ग में पहले से ही लोकप्रिय थी लेकिन अब उसने शहर से बाहर गावों के मतदाताओं में भी काफी लोकप्रियता हासिल कर ली है। इसके अलावा वर्षों से वाम दलों को मिल रहे मुस्लिम मतों का भी ममता के तरफ झुकाव हुआ है। सिर्फ इतना ही नहीं बुद्धिजीवी वर्गें का कम्युनिस्ट पार्टी को वर्षों से मिल रहा समर्थन भी इस बार पहले की तरह नहीं मिल पा रहा है। इन वजहों से वाम दलों को लोकसभा चुनाव में बंगाल में परेशानी उठानी पड़ रही है।वाम दल तीसरे मोर्चा के गठन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली पार्टी है। चुनाव परिणाम से पूर्व के अनुमान के मुताबिक वाम दलों की शक्ति में निश्चित कमी आने वाली है। ऐसी परिस्थितियों तीसरे मोर्चा का नेतृत्व करने वाला खुद कमजोर होगा तो मोर्चा की हालत का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। वाम पार्टियों ने शायद यह भांप लिया है कि वो कमजोर हो रही है ,इसलिए वो तीसरे मोर्चा के सहारे अपनी शक्ति और रजनीति को आगे बढ़ाने का प्रयाश कर रहा है।

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