शनिवार, अप्रैल 11, 2009

चुनाब मे काला धन

चन्दन चौधरी , नई दिल्ली चुनाव के समय में टिकटों की खरीद-फरोख्त बहुत ही बढ़ जाती है। हरेक पार्टी पैसा लेकर टिकट बचती है। पिछले दिनों राजद सांसद साधू यादव ने यह आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दिया कि,पश्चिम चंम्पारन जहां से मैं चुनाव लड़ना चाहता था उसे लोजपा ने प्रकाश झा के हाथों बेच दिया। हरेक पार्टी अपने कुछ प्रत्याशियों को टिकट बेचती है। देखा जाता है कि चुनाव के समय में बहुत सारी शक्ति सक्रिय हो जाती है।जो टिकटों की खरीद फरोख्त में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। जब कोई टिकट पाने भर के लिए कम से कम 30-40 लाख दे रहा हो। उसके सांसद बन जाने के बाद क्षेत्र का बुरा होना स्वभाविक ही है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव केबाद माग्रेट अल्वा ने खुले आम मीडिया में कहा कि चुनाव में मेरे पार्टी में टिकटोें की खरीद फरोख्त जमकर हुई । हालांकि उनके इस बयान का उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा लेकिन वे अपनी बयान पे कायम रहीं।हाल के दिनों में मीडिया में यह खबर आई थी कि आंध्र प्रदेश में प्रजाराज्यम पार्टी के प्रमुख चिरंजीवी विधानसभा का एक टिकट 40 से 50 लाख और लोकसभा की एक टिकट ढ़ाई से तीन करोड़ में बेच रहे हैं । चिरंजीवी अपने पूरे फिल्मी जीवन में कभी भी इतना नहीं कमा सकें हैं जितना वो एक चुनाव के दौरान कमा रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान साउथ के राज्यों में एक परिवार तीस से पैंतीस हजार तक कमा लेते हैं। चुनाव के दौरान अक्सर नेता और उनके कार्यकर्ता नोट बांटटे देखे जाते हैं।चुनाव के दौरान निकलने वाला यह धन वैसा रुपया होता है जिसका सरकार के पास कोई लेखा-जोखा नहीं होता है । चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी अपनाा काला धन प्रयोग में लाते हैं जिससे वे चुनाव जीत सके। कार्यकर्ता चुनाव के दौरान जितना खर्च दिखाते हैं, निश्चित तौर पर उनका खर्च उससे ज्यादा होता है। प्रत्याशियों के लिए चुनाव से बेहतर और कोई समय नहीं हो सकता जिसमें वो अपना काला धन बाहर निकाल सकें। विश्व अभी मंदी के दौर से गुजर रहा है, उसका असर भारत पर भी पड़ा है। चुनाव के दौरान दिखाके जितना धन खर्च होता है उससे ज्यादा छुपा क र होता है। इस धन से देश को मंदी से उबरने में कुछ मदद तो अवश्य ही मिलेगी ।

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