शुक्रवार, अप्रैल 17, 2009

डेल्ही मे चुनाब

इस बार का लोकसभा चुनाव कई मायनों में पूर्व हुए चुनावों से अलग है, लेकिन दिल्ली के चुनाव में इस बार भी मुकाबला आमने -सामने का ही है। चुनाव पूर्व आए रिपोर्टों के मुताबिक इस बार केन्द्र में सरकार बनने या न बनने में सिर्फ 15-20 सीटों का ही अन्तर रहेगा। ऐसे में सभी पार्टीयां एक-एक सीट पर जी तोड़ मेहनत कर रही है। यही वजह है कि दिल्ली के सातों लोकसभा सीटों पर सभी पार्टीयां अपना पसीना बहा रही है। एक -एक सीट के वजह से ही इस बार पूर्वोतर की सभी सीटों पर हरेक पार्टी ध्यान देने से नहीं चूक रही। ऐसे में भला वो दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर ध्यान देने से चूक कैसे कर सकती है। हाल में हुए दिल्ली विधानसभा सभा चुनाव में कांग्रेस ने लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल की है। कांग्रेस की इस सफलता से उसके पार्टी के नेता तक हतप्रभ रह गए थे। इससे पहले लगातार तीन बार सत्ता में बामपंथी पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा, राष्टीय जनता दल बिहार, कांग्रेस अरूणाचल प्रदेश, भारतीय जनता पार्टी गुजरात, सिक्किम डेमोकेटिक फंट सिककम में आया हुआ है। भारत की आजादी के बाद से हुए चुनाव में सत्ता पांच -दस वर्षो में बदलती रही है,लेकिन दिल्ली में कांग्रेस लगातार तीन बार सत्ता में आए तो चौंकना स्वाभाविक है। कांग्रेस की इस सफलता में शीला दीक्षीत की अहम भूमिका रही है। विपक्षी पार्टी तक कांग्रेस की इस सफलता का श्रेय शीला दीक्षीत को ही दिया। यह अलग बात है कि खुद कांग्रेस पार्टी इसका श्रेय शीला दीक्षित को देने को तैयार नहीं है और सारी वाह-वाही सोनिया गाँधी लूट के ले गई। विधान सभा में मिली सफलता के वाबजूद इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने को सुरक्षित नहीं महसूस कर रहीे है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि इस बार मुकाबले में शीला दीक्षित और विजय कु मार मलहोत्रा नहीं है बल्कि यह चुनाव दोनों तरफ के सक्षम प्रत्याशियों के बीच लड़ी जानी है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सात लोकसभा सीट में से छह सीट पर कांग्रेस विजय हुई थी । इस बार अगर जनता बदलाव के लिए वोटिंग करती है तो नुकसान कोंग्रेस को ही होगा और भाजपा आगे बढ़ेगी।चुनाव से कुछ दिन पहले 1984 सिख विरोधी दंगे का भूत फिर से बाहर आया है ,जिसकी वजह से कांग्रेस को अपने दो प्रत्याशी सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर को बिना लड़ाए ही मैदान से हटना पड़ा । कांग्रेस अपने प्रत्याशी को मैदान से हटा कर शायद चुनाव में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद करने लगी है। परंतु यह नहीं भूलना होगा कि गृह मंत्री पी चिदम्बरम के ऊपर एक सिख ने ही जूता फेंका गया था। इससे जाहिर होता है कि 25 साल के बाद भी इस समुदाय के अन्दर कितना आक्रोश अभी भी दबा हुआ है। दिल्ली में पंजाबी समुदाय काफी संख्या में है। जो तिमारपुर, बादली, शालीमार बाग, शकूर बस्ती, बजीर पुर, पटेल नगर, मादीपुर, राजौरी गार्डन , तिलक नगर, हरी नगर, जनक पुरी, जहांगीर पुरी, मालवीय नगर, कालका जी, विश्वास नगर, कृष्णा नगर और शहादरा में भारी संख्या में रहते हैं । यह समुदाय अगर कांग्रेस के खिलाफ गई तो कांग्रेस को इसका खामियाजा न सिर्फ दिल्ली में बल्कि पंजाब तक में देखने को मिल सकता है। शायद इसी को देखते हुए कांग्रेस ने अपने दो प्रत्याशी को हटा लिया है। चुनाव परिणाम के बाद ही यह पता लगेगा कि इसका पंजाबी समुदाय पर क्या प्रभाव पड़ा। दिल्ली में बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के भी बहुत सारे लोग रहते हैं जो बुराड़ी, आदर्श नगर, बजीर पुर, उत्तम नगर, द्वारका,पालम,अम्बेडकर नगर, संगम विहार, तुगलकाबाद, बदरपुर, तिलेकपुरी, कोण्डली, सीलमपुरी, गोकुलपुरी, मुस्तफाबाद और करावलनगर में रहते हैं। यह समुदाय इस बार किस तरफ वोटिंग करते हैं यह देखने वाली बात होगी । इस समुदाय को लेकर दिल्ली की राजनीति में काफी उबाल रहा है। जहां बीजेपी ने लाल बिहारी तिवारी या किसी अन्य पूर्वाचली को टिकट नहीं दिया वहीं कांग्रेस ने महाबला मिश्रा को पश्चिम दिल्ली से लोकसभा का टिकट देकर बाजी मार ली है।कहा तो यह जाता हे कि दिल्ली में जाति ,धर्म आदि के आधार पर चुनाव नहीं होता है ,परंतुयहां भी टिकट वितरण में इन सब बातों पर ध्यान दिया जाता है। यही वजह है कि दिवंगत नेता साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को टिकट न दिए जाने से दिल्ली के जाट समुदाय भाजपा से बहुत ही नाराज हो गए थे । हालांकि यह अलग बात है कि प्रवेश बाद में शांत हो गए । इस बार के चुनाव में सातों सीट पर बहुजन समाज पार्टी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए कमर कस के तैयार खड़ी है। बसपा यहां केचुनाव में किसी पार्टी को लाभ किसी को हानि अवश्य ही पहुचांती है भले ही वो खुद कोइ्र सीट न जीत पाएं।दिल्ली में सात मई को होने वाले चुनाव में इस बार कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा। जहां कांग्रेस विधान सभा चुनाव और पिछले लोकसभा परिणाम को दोहराना चाहेगी वहीं भाजपा विधान सभा की करारी शिकस्त को और पिछले लोकसभा चुनाव की नाकामियों को मिटाना चाहेगी।

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