शनिवार, अप्रैल 11, 2009

पवार कई नावों में सवार

शरद पवार कृषि मंत्री से देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। इस बार उन्हें लग रहा है कि प्रधानमंत्री बनने का मौका हाथ आ सकता है। इसलिए चुनाव न लड़ने का मन बना चुके पवार फिर से मैदान में हैं, और जमकर पैंतरेबाजी कर रहे हैं। इस चुनाव में मायावती, जयललिता, लालू, मुलायम, रामविलास सहित शरद पवार भी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं। ये सभी नेता क्षेत्रीय पार्टी के नेता हैं,जिन्हें लगता है कि अगर कांग्रेस ओर भाजपा दोनों मिलाकर 250 तक सीट नहीं ला पाएं तो ऐसे में क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व बढ़ जाएगा। ऐसे में ये किंग मेकर राजनीतिक सौदेबाजी के तहत खुद ही किं ग बन जाना चाहते हैं ।राजीव गांधी के मृत्यू के बाद 1991 में राजनीति से लगभग सन्यास ले चुके पी.वी.नरसिंह राव देश के प्रधानमंत्री बने तो पवार बहुत ही आहत हुए थे।शरद पवार को ऐसा लग रहा था कि, पार्टी उन्हें ही प्रधानमंत्री बनाएगी लेकिन ऐसा नहींं हुआ। 1991 में शरद पवार प्रधानमंत्री तो नहीं बन पाएं लेकिन मन में प्रधानमंत्री बनने की वह इच्छा अभी तक दबी हुई है। नरसिम्हा राव के बाद कांग्रस पार्टी में अध्यक्ष पद के चुनाव में पवार को सीताराम केसरी से मात खानी पड़ी थी । जब विदेशी मूल के मामले पर वह कांग्रेस से अलग हुए तो उनके साथ पी.ए .संगमा, तारिक अनवर थे, लेकिन बाद में सत्ता का मोह पवार को फिर से कांग्रेस के साथ लाया और इनकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पाटी ने कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्टÑ और केन्द्र तक में सरकार बनाई। पवार सत्ता से दूर नहीं रहना चाहते हैं। शरद पवार मराठा छत्रप हैं, वे 1978 में महाराष्टÑ में देश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बनने वाले व्यक्ति थे। इनका राजनीति में बहुत ही सशक्त पदार्पण हुआ था । इस बार चुनाव की स्थिति को देखते हुए पवार ने अपना नाम पार्टी कार्यकताओं द्वारा आगे बढ़ाया। पवार यह मान रहे हैं कि इस बार के चुनाव में हालात अलग तरह का रहेगा जिसका फायदा चुनाव के बाद इन्हें प्रधानमंत्री के रूप में मिल सकता है। शरद पवार की मजबूती महाराष्ट्र है। जहां के चीनी मिलों से इन्हें शक्ति मिलती है। केन्द्र में कृषि मंत्री रहते हुए पवार ने जिस तरह अपनी शक्ति बढ़ाने और जनता के बीच में साख बनाने का काम किया है, उसका फायदा वो इस चुनाव में उठाना चाहते हैं। अभी राकपां को महाराष्ट में 9 सीटें ही है जबकि उन्हेंलगता है कि इस चुनाव में मराठी प्रधानमंत्री के नाम पर अधिक सीटें मिल सकता है । साथ ही शिवसेना का समर्थन भी उन्हें मराठी मानुष के नाम पर मिल सकता है। लेकिन शिवसेना ने अपना धोषणा पत्र जारी करते हुए कहा कि मराठी पीएम के मुद्दे पर पवार का समर्थन नहीं करूंगा। फिर भी पवार इस मुगलाते में हैं कि चुनाव के बाद महाराष्ट्रके प्रधानमत्री के नाम पर शिवसेना उनका समर्थन कर सकती है। जैसा कि उसने राष्टÑपति बनाने के लिए प्रतिभा देवी सिंह पाटिल का किया थादूसरी तरफ शरद पवार उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के तरफ डोरे डाल रहे हैं। लाल झंडा भी बीजू पटनायक का समर्थन पाने को बेताब है क्योंकि माक्र्सवादी चाहते हैं कि केन्द्र में गैर भाजपा-गैर कांग्रेस सरकार बनें जिसमें इन छोटे दलों की भूमिका बहुत बड़ी होगी । ऐसे में शरद पवार को यह लगने लगा कि अगर यूपीए या, तीसरा र्मोचा सरकार बनाने के करीब रहती है और कुछ सदस्यों की जरूरत होगी तो सौदेबाजी के तहत मैं प्रधानमंत्री बन सकता हूं। ऐसा इसलिए भी संभव है क्योंकि शरद पवार का दूसरे पाटियों में इनके काफी भरोसेमंद और वफादार साथी मौजूद हैं जो पवार के नाम पर मुहर लगवाने का काम कर सकते हैं।राजनीति के माहिर खिलाड़ी शरद पवार फिलहाल यूपीए और बहुत ही गुप्त रूप से तीसरे मोर्चे के साथ हैं। चुनाव परिणाम के बाद बन रहे किसी भी परिदृश्य के लिए वे तैयार बैठे हैं। पवार को लग रहा है कि अगर इस बार प्रधानमंत्री नहीं बन पाएं तो आगे फिर कभी नहीं बन पाएंगें। ऐसे में पवार दो नावों यूपीए और तीसरे मोर्चे के साथ सवारी करना चाहते हैं। इस तरह की सवारी कभी-कभी बहुत खतरनाक भी साबित होता है।चन्दन कुमार चौधरी

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